गोंडवाना धरोहर की सुरक्षा करते हुये अंग्रेजों से युद्ध करने वाले महाराजा स्व.श्री शंकर प्रताप सिंह जूदेव के सेवादार क्रांतिकारी मनीराम जी आज भी सरकारी सम्मान से वंचित

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गोंडवाना धरोहर की सुरक्षा करते हुये अंग्रेजों से युद्ध करने वाले महाराजा स्व.श्री शंकर प्रताप सिंह जूदेव के सेवादार क्रांतिकारी मनीराम जी आज भी सरकारी सम्मान से वंचित

देश और समाज के स्वाभिमान के खातिर जीवन भर संघर्ष करने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जो कि मध्यप्रदेश के जिला नरसिंहपुर तहसील गाडरवारा के नगर चीचली के गोंडवाना रियासत के प्रमुख सेवादार थे। जिन्होंने सन् 1942 में जब महात्मा गॉंधी जी के आवाहन पर अंग्रेजों भारत छोडो़ आंदोलन चलाया जा रहा था तभी चीचली गोंड राजा स्व. श्री शंकर प्रताप सिंह जूदेव पढा़ई करने बाहर गये थे। अंग्रेजों ने मौके की तलाश कर 23 अगस्त 1942 में चीचली गोंड राजमहल को लुटने की मंशा और कब्जा करने के उद्देश्य से आ धमके। उस समय वीर मनीराम अहिरवार जी महल की सम्पूर्ण निगरानी कर सुरक्षा व्यवस्था देख रहे थे। उनकी निगरानी के दौरान उन्हें ज्ञात हुआ कि अंग्रेजी सेना राजमहल की ओर बढ़ रही है। उन्होंने जब देखा तो शूरवीर मनीराम अहिरवार जी ने मोर्चा संभाला और अंग्रेजी सेना को महल की ओर न आने से मना किया। लेकिन अंग्रेजी सेना आगे बढ़ती आ रही थी, रुकना नहीं चाह रही थी।


वीर मनीराम अहिरवार जी की देखरेख और अपने आदिवासी गोंड राजा की वफादारी पर नाराज अंग्रेजों ने गोली चलाना शुरू कर दिया पूर्व में उन्होंने आसमान की ओर गोली चलाई। तभी मनीराम अहिरवार ने सोचा की अंग्रेजी सेना पास आने ही वाली है तो उन्होंने गुलेल को गन बना कर पत्थर से हमला करना ही गोंड महल को बचाना मुनासिब समझा। अंग्रेजी सेना ने वीर मनीराम अहिरवार जी को गोली से निशाना बनाया सबसे पहले वीर मनीराम जी ने उन्हें युद्ध करने और सामने आकर आमने सामने युद्ध लड़ने को ललकारा। काफिर अपनी हरकतों से बाज नही आ रहे थे। तभी मनीराम जी के मोर्चा संभाला। युद्ध की जानकारी सुनते ही गांव के नवयुवकों की टोली जो कि देश की आजादी के लिए गांव में माहौल में थी वह अंग्रेजी सेना वापिस जाओं,इंकलाब जिंदाबाद एवं मनीराम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ के नारे लगाते हुए युद्ध स्थल आ गये। वह सभी युद्ध में मनीराम अहिरवार जी का मनोबल बढाने लगे।
शूरवीर मनीराम जी अंग्रेजी सेना से भीषण युद्ध कर रहे थे तभी वीर मंशराम जसाटी व वीरांगना गोरा देवी कतिया, नर्मदा प्रसाद ताम्रकार, इत्यादि लोगों की टीम ने भी अंग्रेजी सेना के काफिले को भाग जाने को कहा युद्ध में सबसे पहले वीर मंशराम जसाटी जी के प्राणों की अहूति हुई। वीर मनीराम जी पर धूंआधार गोली अंग्रेजों द्वारा उनके ऊपर चल रही थी, जिनका वह सामना कर रहे थे। उन पर चली गोली में वीरांगना गोरा देवी जी कतिया जी शहीद हो गई। दोनों की शहादत देख मनीराम जी ने युद्ध भीषण कर दिया। अंततः उन्होंने अंग्रेजी सेना को लहू लुहान कर अंग्रेजों को घायल कर दिया। सिर में पत्थर मार कर घायल कर अंग्रेजों को गांव से बाहर खदेड़ दिया गया। दूसरे दिन अंग्रेजी सेना अपने अफसरों को लेकर पुनः गांव आ गयेे जिन्हें वीर मनीराम अहिरवार जी की तलाश थी, लेकिन वह भूमिगत होकर राजमहल में ही सुरक्षित रहे। अंग्रेजों ने गांव के कुछ युवाओं को गिरफ्तार कर ले गयेे। जिनसे वीर मनीराम अहिरवार जी की जानकारी प्राप्त की, तब अंग्रेजों ने निर्णय लिया कि मनीराम ऐसे कभी गिरफ्तार नहीं होगें अत: धोके से अपनी गुप्त जेलखाना लिए जाने का फैसला लिया। उन्हें गुप्त तरीके से जबलपुर जेलखाना ले जाया गया। वहां पर उनसे चीचली गोंड राजमहल की गुप्त जानकारी चाही उन्होंने कोई जानकारी नही दी। फिर उन्हें लालच दिया कि तुम्हारी समाज व गोंड आदिवासियों को हमारी सेना में भर्ती कराओं तुम्हारे लिए सरदार बना दिया जायेगा। वीर मनीराम ने अंग्रेजों की कोई भी शर्त नहीं मानी तो उन्हें तरह तरह से उत्पीडि़त कर मार पीट की। उन्होंने देश व अपने आदिवासी राजा के राजमहल की सुरक्षा सहित गोंड धरोहर, संस्कृति , समाज के खातिर जान देना स्वीकार कर लिया लेकिन न राजमहल की जानकारी और न ही सामाजिक युवाओं को अंग्रेजी सेना में भर्ती कराया। क्योंकि अंग्रेजों द्वारा बेगारी व गुलामी कराने हेतु भर्ती किया जाता था। यह मनीराम जी को मंजूर नही था, अंग्रेजी सेना ने उनके जमीर को नही डिगा पाये तो उनकी जान कोड़े मार- मार कर जेल में ही दफन कर दिया।


हमारे गोंड आदिवासी की धरोहर, संपत्ति व संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के महान क्रांतिकारी शूरवीर मनीराम अहिरवार जी ने अनवरत संघर्ष करते हुए देश व समाज के स्वाभिमान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे आदिवासी दानवीर राजा साहब जी द्वारा उन्हें दान में दी गई भूमि सरकार से आज तक प्राप्त नही है। महान क्रांतिकारी को अभी तक राष्ट्रीय शहीद का दर्जा नहीं मिला है। शहीद परिवार तीन पीढ़ियों से संघर्ष कर रहे है। जो मकान के लिए जमीन दी थी उसमें भी लोगों ने बेजा कब्जा कर लिया है, शहीद परिवार कुछ अंश में आजादी के बाद से निवास रत है। उपरोक्त भूमि आज तक शासन के राजस्व रिकार्ड में भी दर्ज नही की न ही मनीराम जी का स्मारक बनाया न ही मूर्ति लगाई गई। शहीद मनीराम जी के पौता मूलचंद मेधोनिया के संघर्ष को देखकर मध्यप्रदेश के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सामाजिक संगठनों द्वारा मांग उठा रहे है कि मध्यप्रदेश के एकमात्र शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी को राष्ट्रीय शहीद का दर्जा दिया जाये एवं शहीद परिवार के उत्तराधिकारी परिवार को सुविधायें उपलब्ध कराई जाये। सरकार से पुरजोर समाज के द्वारा आवाज उठ रही है कि वीर मनीराम अहिरवार जी जिन्होंने सन् 1942 में समाज के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर संपूर्ण आदिवासी व अनुसूचित जाति वर्ग को गौरवान्वित किया है। ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर मनीराम अहिरवार के जन्म स्थान पर विशाल स्मारक, मूर्ति शीघ्र स्थापित की जाये। चीचली महाराजा श्री के नाती माननीय श्री नीलमणि शाह जी ने अपने नाना जी द्वारा शहीद परिवार को दी गई भूमि को अपनी रानी माँ के द्वारा पुनः दान पत्र देने एवं हर संभव सहयोग करने की सहमति देकर शहीद परिवार को आश्वासन दिया है शहीद परिवार उनके प्रति आभार व्यक्त करता है। आदिवासी वर्ग के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले महान क्रांतिकारी वीर सपूत मनीराम अहिरवार को सच्ची श्रद्धांजलि तभी सार्थक होगी जब गोंड राजा साहब के ईमानदार महान क्रांतिकारी का स्मारक उनके जन्म स्थान चीचली में बने।

लेखक,
मूलचंद मेधोनिया शहीद सुपौत्र वीर मनीराम अहिरवार जी चीचली तहसील गाडरवारा जिला नरसिंहपुर मध्यप्रदेश मोबाइल 8878054839