दल्ली राजहरा के वार्ड क्रमांक 2 आजाद नगर वार्ड के रामनगर चौक में छत्तीसगढ़ी परंपरा को संजोकर विगत 57 वर्षो से मनाया जा रहा है ,गौरी गौरव का पांच दिवसीय उत्सव !”

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दल्ली राजहरा के वार्ड क्रमांक 2 आजाद नगर वार्ड के रामनगर चौक में छत्तीसगढ़ी परंपरा को संजोकर विगत 57 वर्षो से मनाया जा रहा है ,गौरी गौरव का पांच दिवसीय उत्सव !”

दल्लीराजहरा शहर के वार्ड 2 रामनगर चौक में विगत 57 वर्ष पहले गौरा-गौरी उत्सव की मनाया जा रहा है l दल्ली राजहरा में जब खदान में लौह अयस्क खनन का कार्य की शुरुआत हुआ था तब आसपास के गांव में रहने वाले छत्तीसगढ़ी परिवार के लोग जब काम की तलाश में दल्ली राजहरा आए तो उन्होंने काम के साथ-साथ अपने संस्कृति और परंपराओं को भी दल्ली राजहरा में लेकर आए l दल्ली राजहरा के विभिन्न चौक चौराहों पर गौरा चाँवरा का इन लोगों के द्वारा निर्माण किया गया l छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह का पारंपरिक त्यौहार गौरी गौरा उत्सव के रूप मे मनाये जाने लगा l

पांच दिवसीय यह त्यौहार मन में उमंग उत्साह और कौतूहल को जन्म देता है l लोंगो के मन में शंका रहती है कि देव आना एक ढकोसला है l लेकिन यह सब पूजा स्थल पर पहुंचकर देखने से पता चलता है l जब लोग द्वारा गौरी उत्सव के बाजे की धुन पर अपने आप झूमने लगते हैं l प्रतिदिन 12 से 15 लोगों का इस तरह से देव आना और देव उतर जाने के बाद उनसे पूछना कि तुम्हारे साथ क्या हुआ तो उनका अभिज्ञता जताना l यह सभी अलौकिक शक्ति को दर्शाता है l

वार्ड नंबर 2 में गौरी गौरा उत्सव का शुरुआत स्वर्गीय उजियार बैगा और स्वर्गीय गणेश राम निर्मलकर ने की थी। उस समय आज की तरह बिजली व्यवस्था नहीं होती थी। मिट्टीतेल के गैस से रोशनी की जाती थी। मिट्टी से गौरा चाँवरा का निर्माण हर साल होता था। क्योंकि बरसात में गौरा चाँवरा पूरी तरह बह जाता था। आज भी अपने दादा-दादी और नाना नानी के द्वारा शुरुआत की गई उस परंपरा को रामनगर चौक के युवा पीढ़ी जारी रखे हुए हैं। इस परंपरा को बनाए रखना में बुजुर्गों महिलाओं कभी पूरी तरह से योगदान है lआज भी उसी अंदाज में गौरी-गौरा उत्सव मनाया जाता है।
लगातार 2 वर्ष की बाद इस वर्ष भी दीपावली के त्यौहार के 1 दिन बाद गौरा गौरी उत्सव मनाया गया l
कहा जाता है कि चंद्रमा के इस 28 साल के चक्र को चंद्र युग कहा जाता है l इस चक्र में चंद्रमा की गति और तिथियां की गणना में थोड़ा अंतर होता है l जिसमें त्यौहार की तारीख है अलग-अलग हो सकती है l हर 28 साल में चंद्रमा की गति तिथियों की गणना में अंतर पूर्ण हो जाता है और त्योहारों की तारीख फिर से सामान्य हो जाती है l 28 वर्ष के बाद लगातार 3 वर्षों तक दीपावली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा मनाया जाता है l
रामनगर चौक में दीपावली के 5 दिन का त्योहार में द्वादशी के दिन गौरी गौरा उत्सव का शुरुआत छोटे-छोटे बच्चों ने मुसर (पौराणिक धान से चावल निकालने का पौराणिक औजार से अंडे फोड़ने की परंपरा से शुरू किया जाता है।


उसके बाद मोहल्ले की माताओं ने गौरी गौरा का श्रृंगार गीत गाना , गौरा छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुसार गीत गाकर गौरी गौरा बैगा और लोगों को जगाने का गीत गाया जाता है । द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी को यह परंपरा लगातार चलने के
बाद महालक्ष्मी पूजा दीपावली के रात में युवाओं के द्वारा मिट्टी से भगवान शिव व माता पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है l जिसमें भगवान शिव नंदी पर तथा माँ पार्वती कछुआ पर सवार होती है l दोनों मूर्तियों को अलग-अलग लकड़ी से बने हुए पाटा पर चंदेनी गोंदा फूल , धान की बाली , मेमरी , सीलहोटी आदि से सजाकर कलश के साथ पूरे मोहल्ले में घुमाया जाता है । लोगों के द्वारा जगह-जगह रोक कर गौरी गौरा की बड़े श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना की जाती है l

पूजा अर्चना करते हुए गौरी गौरा तथा कलश के साथ लोग राजहरा बाबा तलाब पहुंचकर विसर्जन किया गया है l रामनगर चौक गौरा उत्सव समिति के पुराने समय से जुड़े हुए शैलेश बम्बोडे ने समिति में बेहतरीन भागीदारी करने के लिए सभी का धन्यवाद किया l उन्होंने कहा कि किसी भी महोत्सव बेहतरीन तभी होता है l जब हर व्यक्ति निस्वार्थ भाव से अपनी जिम्मेदारी निभाता है तथा खुले मन से सहयोग करता है l उन्होंने गोवर्धन पूजा दीपावली भाई दूज के लिए सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं दी l कार्यक्रम की समाप्ति विसर्जन के उपरांत लोगों का राउत नाचा नाचते हुए घर पर आने से समाप्त हुआ l