देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे में केवल CM पद पर ही खटपट नहीं, इस बात पर भी खींच गई तलवार,जानिए अंदर की बात

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महायुति में अब केवल सीएम पद को लेकर ही खटपट नहीं है. शिवसेना और भाजपा के बीच गृह मंत्रालय और शपथ ग्रहण समारोह की तारीख के ऐलान को लेकर भी तलवार खींच गई है।

महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन होगा? यह देश का ट्रेंडिंग सवाल है. महायुति में अब तक सीएम पद पर सस्पेंस है. भले ही अभी तक सीएम का नाम नहीं तय हुआ है, मगर शपथ ग्रहण की तारीख और समय तय है. अभी तक जो इनपुट हैं, उससे साफ है कि भाजपा यानी भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद मिलेगा और शपथ ग्रहण समारोह 5 दिसंबर को होगा. महायुति गठबंधन के नेताओं ने शनिवार को इसकी घोषणा की. हालांकि, शिवसेना इससे नाराज है और इस फैसले को एकतरफा बता रही है।

महाराष्ट्र में सीएम पर सस्पेंस के बीच हलचल उस वक्त और बढ़ गई, जब एकनाथ शिंदे अचानक अपने गांव सतारा चले गए. वहां उनकी तबीयत खराब हो गई. बताया गया कि वह महायुति में बातचीत से नाराज हैं. एकनाथ शिंदे ने सीएम पद को लेकर अब तक पूरी तरह से सरेंडर नहीं किया है. अगर उन्हें सीएम न भी बनाया जाता है तो उन्होंने कुछ शर्तें रख दी हैं. यह मानना भाजपा के लिए कठिन हो रहा है. इस तरह से भले ही शिंदे गांव में हों, मगर बेचैनी भाजपा की बढ़ चुकी है।

अजित पवार ने क्या कह दिया
इस बीच एनसीपी चीफ अजित पवार ने कहा, ‘दिल्ली में हुई बैठक में तय हुआ कि महायुति भाजपा के मुख्यमंत्री के साथ सरकार बनाएगा और बाकी दोनों दलों के पास डिप्टी सीएम (उप मुख्यमंत्री) होंगे.’ उन्होंने कहा, ‘पहली बार ऐसा नहीं हुआ है कि देरी हुई हो… अगर आपको याद हो तो 1999 में सरकार बनाने में एक महीना लग गया था।

भाजपा-शिवसेना में खटपट
इससे कुछ घंटे पहले प्रदेश भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले ने अलग से घोषणा की थी कि शपथ ग्रहण समारोह शाम 5 बजे दक्षिण मुंबई के आज़ाद मैदान में होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहेंगे. एक्स पर की गई इस घोषणा से शिवसेना में बेचैनी है. शिवसेना प्रवक्ता संजय शिरसाट ने कहा, ‘तीनों दलों – एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार – के नेताओं को एक साथ इसकी घोषणा करनी चाहिए थी. भाजपा ने स्थल और तारीख की घोषणा से पहले मुख्यमंत्री से सलाह ली होगी।

भाजपा का सीएम तो शिवसेना को चाहिए होम
उन्होंने इसके बाद एक अहम विभाग पर दावा ठोंकते हुए कहा, ‘अगर मुख्यमंत्री पद भाजपा को जाता है तो महायुति को गृह विभाग शिवसेना को देना चाहिए.’ इससे पहले की सरकार में गृह विभाग डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के पास था, जब शिंदे मुख्यमंत्री थे. इस पर बावनकुले ने जवाब देते हुए कहा कि इस तरह के मामलों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जानी चाहिए. इससे गठबंधन के भीतर बढ़ते मतभेद उजागर होते हैं।

किस मांग पर अड़ी है शिवसेना
विभागों को लेकर यह तकरार ऐसे समय में हो रही है जब कार्यवाहक मुख्यमंत्री शिंदे सतारा के अपने गांव दरे में हैं, जहां वे शुक्रवार को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए चले गए थे. शिंदे ने पहले घोषणा की थी कि प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का फैसला उन्हें और उनकी पार्टी को मंजूर होगा, लेकिन भाजपा की ओर से उपमुख्यमंत्री पद की पेशकश का कथित तौर पर विरोध हुआ है. जानकारों की मानें तो शिंदे का खेमा गृह विभाग को लेकर अड़ा हुआ है।

शिंदे की तबीयत खराब होने से खलबली
एकनाथ शिंदे की तबीयत शनिवार को खराब हो गई. उनके डॉक्टर ने शनिवार को मीडिया को बताया कि कार्यवाहक शिंदे को बुखार, गले में संक्रमण और सर्दी है, जिसके लिए उन्हें नसों के जरिए दवा देने की जरूरत पड़ी. सीएम के बेटे और कल्याण से सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा कि शनिवार को कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि सीएम बाहर थे और रविवार को लौटेंगे. डिप्टी सीएम पवार ने कहा कि एकनाथ शिंदे ने दो दिन की छुट्टी ली है क्योंकि कार्यवाहक सरकार में ज्यादा काम नहीं था।

आज और कल में साफ होगी तस्वीर
आज अगर एकनाथ शिंदे गांव से वापस आते हैं तो कुछ बड़ा ऐलान हो सकता है. शनिवार को ही शपथ ग्रहण समारोह की तारीख का ऐलान करने से पहले शिवसेना नेता शिरसाट ने कहा था कि जब भी एकनाथ शिंदे को लगता है कि उन्हें कुछ सोचने के लिए वक्त चाहिए तो वो अपने गांव चले जाते हैं. वह अक्सर कुछ बड़ा फैसला लेने से पहले अपने गांव जाते हैं. इसलिए वह आज कुछ बड़ा फैसला ले सकते हैं. उन्होंने दावा किया कि सोमवार तक सबकुछ साफ हो जाएगा।

किसका पलड़ा भारी?
देवेंद्र फडणवीस बनाम एकनाथ शिंदे में पलड़ा देवेंद्र फडणवीस का ही भारी है. इसकी कई वजह है. पहले वजह है कि भाजपा के पास अपने दम पर 132 सीटें हैं. दूसरी बड़ी वजह है कि अजित पवार भी देवेंद्र फडणवीस के साथ हैं. अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पहले ही कह चुकी है कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद के लिए उसे मंजूर हैं. 288 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है, जबकि बीजेपी ने अकेले 132 सीटें जीती हैं. इसके बाद शिवसेना को 57 और एनसीपी को 41 सीटें मिली हैं।