तीजन बाई को ‘‘बेचारी’’ मत बनाईए, उम्र के इस पड़ाव में ये अपमान है पंडवानी गुरु का: मुहम्मद ज़ाकिर हुसैन

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लेखक-पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन की फेसबुक वॉल से साभारछत्तीसगढ़ की धरोहर और पंडवानी की सिद्ध गुरू पद्मविभूषण तीजन बाई ने अब बोलना भी बंद कर दिया है। दो साल पहले लकवे का शिकार होने के बाद आज इस हालत में है कि बिस्तर पर पड़ी रहती है और इशारों में प्रतिक्रिया दे देती है।
कैमरा दिख जाए तो खुद से उठ कर बैठ जाती है और कैमरा बंद करने लगो तो नाराजगी भी जता देती है। देश-विदेश में अपनी कला से डंका बजाने वाली तीजन बाई का उम्र के इस पड़ाव में ऐसा हो जाना वाकई दुखद है।
लेकिन इन दिनों जिस तरह से उन्हें ‘‘बेचारी’’’ बनाया जा रहा है, वह इससे भी ज्यादा दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। आए दिन मेरी बिरादरी उनके गनियारी गांव पहुंचती है तो कैमरे के सामने घर वालों की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी रहती है, मानों तीजन बाई पैसे-पैसे को मोहताज हो गई हैं।
ठीक है, सरकारी पेंशन और सरकारी मदद को लेकर कुछ पेंच है या इसमें देरी हो रही है लेकिन तीजन बाई के नाम पर भावुक हो रहे लोग ठंडे दिमाग से सोचें कि जब भिलाई स्टील प्लांट की मेडिकल टीम घर आकर परीक्षण कर रही है और सारी दवाएं बीएसपी दे रही हैं वहीं छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से भी फिजियोथेरेपिस्ट और डाक्टर आकर देख रहे हैं, ऐसे में तीजन बाई को क्या सचमुच पैसे की दरकार है?
दरअसल, यह तस्वीर का एक ऐसा पहलू है, जो तीजन बाई ही नहीं किसी भी ‘’कमाउ पूत’’ के साथ आखिरी वक्त में होता रहा है। तीजन बाई के दम पर उनका पूरा कुनबा पलता रहा और पूरी शानो-शौकत के साथ पला है। आज उनके कुनबे में 35-36 लोग हैं, जो ऑन कैमरा खुद को बेरोजगार और पैसे-पैसे का मोहताज बताते हैं।
अब आखिरी वक्त में तीजन बाई मंचीय प्रदर्शन देने की हालत में रही नहीं और पहले जैसी कमाई भी नहीं रही, इसलिए उनके परिवार के लोगों का पैसे के लिए ‘’रोना-धोना’’ कुछ और ही संदेश देता है।
हाल तो यह है कि उनके परिवार से तीजन बाई की परंपरा को आगे बढ़ाने के नाम पर कोई तैयार नहीं है। उनके साथ साया बन कर साथ रहा उनका सचिव भी आखिरी वक्त अपने घर बैठ गया है।
जिन्हें नहीं मालूम है, उन्हें बता दूं कि तीजन बाई भिलाई स्टील प्लांट की मुलाजिम थी। अगस्त 2017 को वो एस-10 ग्रेड से वरिष्ठ समन्वयक लोककला के पद से रिटायर हुईं। एस-10 का मतलब होता है कर्मियों में वरिष्ठता ग्रेड में दूसरे पायदान पर।
इस ग्रेड को अफसरों के समकक्ष भी कह सकते हैं। इस ग्रेड में आज रिटायर होने वाले कर्मियों में 90 लाख से कुछ ज्यादा ही मिलता है।
जब तीजन बाई रिटायर हुई, तब तक वेज रिवीजन नहीं हुआ था तो मान लीजिए कि इससे कुछ कम ही मिला होगा।


बीएसपी के अधिकारी बताते हैं कि जब तक तीजन बाई सर्विस में रही, उनके नाम से एनआरएल (नॉन रिफंडेबल लोन) और दूसरे लोन परिवार वालों ने खूब निकाले। इससे रिटायरमेंट के वक्त मिलने वाली राशि में कमी आई। फिर तीजन बाई अपने घर-परिवार से दरिद्र कभी नहीं रही। गनियारी और जेवरा सिरसा के पास बेलौदी गांव इसके गवाह है।
भाग्य किसी पर कैसे मेहरबान होता है, इसकी मिसाल तीजन बाई रही है। उन्होंने पंडवानी के जरिए सफलता की बुलंदियो को छुआ है। सम्मान तो लगभग सभी ऐसे हैं, जिसके लिए उन्हें आवेदन या जोड़तोड़ का रास्ता अपनाने का मौका ही नहीं मिला।
पद्मश्री के दौरान मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा चाहते थे दुर्ग से किसी को मिले। लिहाजा तीजन बाई का नाम भेजा गया। तब सारी औपचारिकताएं भिलाई स्टील प्लांट के अधिकारियों ने पूरी की।
तीजन बाई ने सिर्फ अंगूठा लगाया। पद्म भूषण के दौरान तो ऐसा हुआ कि छत्तीसगढ़ से नाम जाना था और तमाम नाम पर विचार करने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनका नाम भेज दिया। पद्मविभूषण के लिए भी ऐसा ही हुआ। यानि तीनों सम्मान उनकी झोली में खुद ब खुद आ गिरे।
रही इलाज की बात तो तीजन बाई बीएसपी की सेवानिवृत्त कर्मी है। बीएसपी से उनका लगातार इलाज चल रहा है। वो खुद भी समय-समय पर सेक्टर-9 अस्पताल जाती रही हैं।
दो साल पहले बीएसपी के डायरेक्टर इंचार्ज अनिर्बान दासगुप्ता भी तीजन बाई को देखने गनियारी गए थे और उन्होंने अपने मेडिकल अमले को दिशा-निर्देश दिए थे। इसके बाद वक्त-वक्त पर बीएसपी की एंबुलेंस डाक्टर व अन्य स्टाफ के साथ उनके घर पहुंच रही है। समय पर दवाएं रिपीट हो रही हैं।
पता चला कि तीजन बाई की मेडिकल रिपोर्ट डायरेक्टर इंचार्ज ऑफिस भी देखता है। इन सबके बावजूद उम्र भी मायने रखती हैं। अब तीजन बाई की उम्र हो चली है। घर वाले बताते हैं 78 की हो गई हैं। हो सकता है इससे कुछ ज्यादा ही हो। क्योंकि जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य रिकार्ड उनके पास है नहीं।
2016 में बीएसपी ने अपने रिकार्ड में उनकी उम्र 60 होने पर रिटायर किया क्योंकि जब भर्ती हो रही थीं, तब ‘’नेकनीयती’’ के चलते उनकी उम्र घटा कर लिखाई गई थी।
खैर, जिंदगी भर यश कमाने वाली तीजन बाई उम्र के इस पड़ाव में बुरी तरह अस्वस्थ है। जरूरत दवाओं और तीमारदारी की है, जो बीएसपी और सरकारी अमला पूरी कर रहा है। इन सबके बीच अपने दो बेटे और एक बेटी को गंवाने वाली तीजन बाई अकेली हो चुकी है। उनके परिवार के ज्यादातर लोग बेलौदी गांव में रहते हैं। यहां गनियारी में उनकी बहन रंभा और उसकी बहू देखभाल करते हैं।
कुछ एक व्हाट्सएप ग्रुप में भावावेश में कला संस्कृति से जुड़े लोग आपस में धनराशि इकट्ठा कर उन्हें देने की योजना बना रहे हैं। उनकी भावनाओं का भी सम्मान है। लेकिन मेरा मानना है कि तीजन बाई को उम्र के इस पड़ाव में पैसा-कौड़ी की वैसी जरूरत नहीं है। आज उन्हें जो भी आर्थिक मदद मिलेगी उससे उनका 35-36 ‘बेरोजगार’ लोगों का कुनबा ही पलेगा।
मेरा तो मानना है कि तीजन बाई को इस तरह मोहताज बता कर हम उनका ही अपमान कर रहे हैं।

लेखक-पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन की फेसबुक वॉल से साभार