छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने मीसाबंदियों को लेकर बड़ा फैसला लिया है। राज्य सरकार मीसाबंदियों को फिर से सम्मान निधि देगी। इस संबंध में प्रदेश के मुखिया विष्णुदेव साय ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि लोकतंत्र के सेनानियों का सम्मान करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने बड़ा फैसला लिया है।
इसके मुताबिक, आपातकाल के दौरान जो मीसाबंदी जेल में रहे। 19-19 महीना जेल की सजा काटी। इस वजह से उनका परिवार बर्बाद हो गया था। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मीशाबंदियों के सम्मान में एक कार्यक्रम शुरू किया था, जिसे कांग्रेस की सरकार ने बंद कर दी थी। अब प्रदेश में बीजेपी की सरकार है तो अब सम्मान निधि को दोबारा चालू किया जा रहा है। पिछले पांच साल मीसाबंदियों जो पेंशन नहीं मिली है, उसे एकमुश्त दिया जायेगा।


सीएम साय ने कहा कि इसे लेकर कानूनी रूप दिया गया है ताकि आगे चलकर भविष्य में कोई सरकार नहीं बदल सके। उनके सम्मान निधि में कोई किसी तरह की कोई कटौती न हो। उन्हें बराबर सम्मान मिलता रहे। इसके लिए विधेयक पास किया गया है।
छत्तीसगढ़ में करीब 350’मीसाबंदी
छत्तीसगढ़ में करीब 350 ‘लोकतंत्र सेनानी’ या मीसाबंदी हैं। इसी साल फरवरी में सरकार ने मीसाबंदियों के लिए पेंशन योजना को बहाल किया था, जिसे 2019 में कांग्रेस सरकार ने रोक लगा दी थी।
प्रत्येक माह मिलती है पेंशन
मीसाबंदियों के लिए राज्य में पहली बार साल 2008 में रमन सरकार में यह पेंशन योजना शुरू हुई थी। मीसाबंदियों को तीन अलग-अलग श्रेणियों में 10 हजार रुपये से 25 हजार रुपये प्रति माह तक पेंशन दी जाती है।

क्यों कहते हैं मीसाबंदी?
25 जून 1975 की आधी रात को देशभर में आपातकाल लागू कर दिया गया था। इस दौरान नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे और बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून खत्म कर दिया गया था, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर अदालत में पेश करने का प्रावधान खत्म हो गया। कांग्रेस शासित राज्यों में मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) कानून के तहत सत्ता विरोधी एक लाख से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया गया था। छत्तीसगढ़ में भी उस समय कांग्रेस सरकार थी। मीसा कानून के तहत जिसे जेल में डाला गया ऐसे लोगों को मीसाबंदी कहा जाता है। बीजेपी शासित सरकारों में मीसाबंदियों को पेंशन दी जाती है।
भविष्य में कोई सरकार नहीं बदल सकेगी फैसला
मीसाबंदी कानून बन जाने के बाद चाहे राज्य में किसी की भी सरकार बने। वह इस कानून में कोई बदलाव नहीं कर सकेगी। इस कानून को बनाने के लिए सरकार को एमपी के कानून का प्रारूप सौंपा गया था। लंबे समय से इस कानून की मांग की जा रही थी, लेकिन मामला लटका हुआ था।
भूपेश बघेल ने लगाई थी रोक
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने मीसाबंदियों की पेंशन पर रोक लगा दी थी। मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ के मीसाबंदियों को 2008 से पेंशन मिल रही थी, लेकिन जनवरी 2019 में भूपेश बघेल ने इस पर रोक लगा दी थी। विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान बीजेपी ने फिर से पेंशन देने का वादा किया था।
कितनी मिलती है पेंशन
रमन सिंह सरकार 2008 में पेंशन मिलना शुरू हुआ था। उनके तीसरे कार्यकाल में मीसाबंदियों की पेंशन बढ़ाकर 15 हजार रुपए कर दी गई थी।