भिलाई के चर्चित अपहरण और हत्याकांड के दोनों आरोपियों की छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी, कोर्ट ने खारिज की अपील

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बिलासपुर हाईकोर्ट में अपहरण और हत्या के मामले में आरोपियों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि शव न मिलने के बावजूद परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरोपियों की संलिप्तता साबित करते हैं।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपहरण और हत्या के एक मामले में आरोपियों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि भले ही मृतक का शव बरामद नहीं हुआ, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की सुसंगत श्रृंखला अभियुक्तों की संलिप्तता को स्पष्ट रूप से साबित करती है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यदि हर मामले में शव की बरामदगी को अनिवार्य माना गया तो आरोपी शव को नष्ट कर सजा से बच सकते हैं। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की डिवीजन बेंच ने चतुर्थ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, दुर्ग के 24 फरवरी 2021 के निर्णय को सही ठहराते हुए आरोपियों द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया।

मामले के अनुसार, मृतक हरिप्रसाद देवांगन के पुत्र आनंद देवांगन ने 18 जनवरी 2019 को नेवई थाने में अपने पिता के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। जांच के दौरान पुलिस ने आरोपियों आकाश कोसरे और संजू वैष्णव को गिरफ्तार किया। पूछताछ में उन्होंने हरिप्रसाद का अपहरण करने, उसकी हत्या करने और खोरपा गांव के पास खेत में भूसे के साथ शव जलाने की बात कबूल की। अभियोजन पक्ष ने अपना मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित किया। आरोपियों के बयानों के आधार पर घटनास्थल से मृतक से संबंधित वस्तुएं, जैसे जली हुई हड्डियां, टिफिन बॉक्स, आभूषण और व्यक्तिगत सामान, बरामद किए गए। इन अवशेषों की फॉरेंसिक और डीएनए जांच कराई गई, हालांकि डीएनए प्रोफाइल स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं हो सका।

फॉरेंसिक विशेषज्ञ ने गवाही दी कि बरामद हड्डियां मानव की थीं और लगभग 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति की थीं, जो मृतक की उम्र से मेल खाती थी। अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों की गवाही प्रस्तुत की, जिनमें जांच अधिकारी अमित कुमार बेरिया, फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. स्निग्धा जैन और अनुपमा मेश्राम शामिल थे। अभियुक्तों के वकीलों ने तर्क दिया कि प्रत्यक्ष साक्ष्य या चश्मदीद गवाहों के अभाव में दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मृतक की पहचान प्रमाणिक रूप से स्थापित नहीं हुई और जब्त वस्तुएं सार्वजनिक स्थानों से मिली थीं, जहां किसी का भी पहुंचना संभव था। इसके अलावा, जब्त वस्तुओं या अपराध में प्रयुक्त वाहन की विधिसम्मत पहचान नहीं कराई गई।

हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने अपहरण, डकैती और हत्या की घटनाओं की एक सुसंगत श्रृंखला प्रस्तुत की, जो आरोपियों के अपराध को साबित करती है। डीएनए की पुष्टि न होने के बावजूद, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को पर्याप्त मानते हुए कोर्ट ने निचली अदालत की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।