
भिलाई। जिले में नागरिक आपूर्ति निगम में डेढ़ साल से राशन दुकानों में अनाज की सप्लाई करने वाली ठेका एजेंसी का चयन नहीं हुआ है। वैकल्पिक इंतजाम के भरोसा पुरानी एजेंसी से ही काम लिया जा रहा है, इसके चलते पीडीएस में कालाबाजारी का खेल शुरू हो गया है। पुरानी ठेका एजेंसी की सेटिंग के चलते पुराने ढरें में काम चल रहा है। जिले में 396 राशन दुकान संचालित हैं। इन दुकानों में पीडीएस चावल की कालाबाजारी हो रही है। सूत्रों की मानें तो सरकार को हर दिन करीब 30 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाया जा रहा है। बता दें कि कोचिया और राइस मिलर्स की सांठगांठ से यह पूरा खेल चल रहा है। नागरिक आपूर्ति निगम ने डिमांड ऑर्डर कटने के साथ चावल कटिंग का यह खेल चल रहा है। इधर राशन दुकानों से गरीबों को चावल नहीं मिल पा रहा है, हर महीने आवंटन जरूर हो रहा है। गरीबों के पीडीएस का चावल दुर्ग,भिलाई, खुर्सीपार, कैम्प,पाटन और करंजा भिलाई में वाहनों में लोड होकर राइस मिलों में पहुंच रहा है। इन राइस मिलों से नागरिक आपूर्ति निगम तक पहुंच रहा है, जहां से डिमांड ऑर्डर के हिसाब से पुनः राशन दुकानों में भेज दिया जा रहा है। इस काम में हरदीप, मनीष और अनिल नामक तीन व्यक्ति सक्रिय बताए गए हैं। इनकी जिले के 100 से अधिक राशनदुकान में सांठगांठ बताई गई है।

मिलर्स और कोचिए मिलकर खपा रहे चावल

दो मिलर्स रहते हैं हमेशा चर्चा में, जांच का भी डर नहीं
जानकारी के मुताबिक जिले में दो राइस मिलर्स बेखौफ होकर पीडीएस का चावल खरीदी-बिक्री में लगातार संलिप्त है। इन मिलर्स के खिलाफ जांच भी हुई। यहां तक पुलिस ने जब पीडीएस का चावल पकड़ा. इन मिलर्स का नाम भी सामने आया, लेकिन किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई। जानकारी के मुताबिक किशोर शॉटेज और श्रद्धा मिल को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं। बावजूद कार्रवाई नहीं हुई। हाल ही में ईडी की टीम ने किशोर शॉर्टेज में दबिश भी दी थी। इसके अलावा श्रद्धा राइस में खाद्य विभाग ने कई बार जांच कर चुकी है।
ब्रोकन के कारण राशन दुकानों से हो रही चावल की खरीदी

जानकारी के मुताबिक मिलर्स को शासन की गाइडलाइन के अनुरूप प्रति क्विंटल धान में करीब 70 किलो चावल जमा करना होता है. लेकिन मिल में एक क्विंटल के एवज में इतना प्रोडक्शन ही नहीं हो पाता। इसके कारण औसतन 63 किलो तक चावल निकलता है, बाकी ब्रोकन में कटिंग हो जाता है। इस प्रकार इस बीच के डिफरेंस को एडजेस्ट करने के लिए मिलर्स कोचियों से सेटिंग कर राशन दुकान से ही पीडीएस का चावल खरीदते हैं। उसे फिर से रिसाइकिल कर नागरिक आपूर्ति निगम में जमा करा देते हैं। यह खेल लंबे समय से चल रहा है, अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

एजेंसी तय करना नान का काम, शिकायत मिलने पर होगी कार्रवाई
ठेका एजेसी तय करने का काम नागरिक आपूर्ति निगम का है। जब तक ठेका नहीं होता है, पुराने से काम लिया जाता है। डीओ में कटिंग करने वालों की शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी। खाद्य विभाग की टीम राशन दुकानों की चेकिंग समय-समय पर करती है। सैपल भी लिए जाते हैं, कार्रवाई भी होती है:- टीएस अतरी,प्रभारी खाद्य नियंत्रक दुर्ग
खाद्य विभाग की भूमिका पर संदेह
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बेधड़क उचित मूल्य की दुकान से मिलने वाले चावल की तस्करी की जा रही है। खाद्य विभाग कार्रवाई करना तो दूर बिना जांचे ही पीडीएस के चावल को पहचानने से इनकार कर देता हैं। पुलिस पीडीएस चावल संदेह कर पकड़ती है। खाद्या विभाग लीपापोती कर कह देता है पीडीएस के समतुल्य नहीं है।
आखिर उलटी गंगा क्यों बह रही है
राइस मिल में मिलिंग के लिए धान ले जाया जाता है यह समझ में आता है। क्योंकि वहां धान की मिलिंग होती है। मिलिंग के बाद वहां से चावल गोदामों में पहुंचाया जाता है। यहां उल्टी गंगा बह रही है। बाहर से चावल राइस मिल में पहुंचाया जा रहा है। अब चावल का फिर से धान तो बनेगा नहीं। साफ है कुछ गड़बड़ है पर अधिकारी जांच करने की बजाए हाथ खड़ कर रहे हैं।
ऐसे चलता है पूरा खेल
असल में राशन दुकान से मिलने वाला चावल मोटा होता है। सच्चाई यह है कि अधिकांश कार्डधारी राशन दुकान से चावल लेने के बाद 21-22 रुपए में बेच देते हैं। चावल को राशन दुकान वाले भी खरीद लेते हैं। राशन दुकान से छुड़ा कर बेचा गया चावल राइस मिलों में जाता है। वहीं एक बार फिर मिलिंग कर बाजार में अधिक दाम में बेचा जाता है। अलग मिलिंग नहीं भी हुई तो उसी चावल को मिलर कस्टम मिलिंग के बदले नान को देता है। उसी चावल को नान के अधिकारी फिर राशन दुकानों में पहुंचा देते हैं। इस तरह रिसाइकिलिंग चलते रहता है। बेहतर होता कि सरकार चावल की क्वालिटी सुधार कर राशन कार्डधारियों को दे तो कालाबाजारी काफी हद तक रुकेगा। क्वालिटी ठीक होने से लोग चावल को खाएंगे।