भिलाई में गरीबों के हक का चावल की खुलेआम तस्करी: गरीबों का राशन हड़प रहे हैं मुनाफाखोर,अफसरों की मिलीभगत से चल रहा ये खेल

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छत्तीसगढ़ सरकार गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को राशन दे रही है, जिससे कोई भी गरीब भूखा न रहे। इधर मुनाफा के लालच में गरीबों के हक के चावल की तस्करी की जा रही है।

खाद्य विभाग की भूमिका पर संदेह

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बेधड़क उचित मूल्य की दुकान से मिलने वाले चावल की तस्करी की जा रही है। खाद्य विभाग कार्रवाई करना तो दूर बिना जांचे ही पीडीएस के चावल को पहचानने से इनकार कर देता हैं। पुलिस पीडीएस चावल संदेह कर पकड़ती है। खाद्या विभाग लीपापोती कर कह देता है पीडीएस के समतुल्य नहीं है।

शासन की योजना के मुताबिक यहां अंत्योदय, निराश्रित, अन्नपूर्णा, प्राथमकिता वाले तथा नि:शक्तजनों को सस्ते दर पर चावल, शक्कर, मिट्टी, दाल आदि सामग्रियां उपलब्ध कराया जाता है। शहर में इसकी सबसे ज्यादा शिकायतें छावनी,खुर्सीपार, केम्प,सुपेला चावल लाइन,रामनगर,कृष्णा नगर स्थित राशन दुकानों से मिल रही है।

सूत्रों के अनुसार बीपीएल कोटे का चावल 22 रुपए में खरीद कर उसे 25 रुपए में बेच रहे हैं। ऐसी जानकारी मिली है कि अधिकांश राशन दुकानों से बीपीएल और एपीएल कार्डधारी चावल नहीं ले जाते। वे राशन दुकानों में आते हैं और फिंगर प्रिंट देने के बाद 22 रुपए की दर से चावल का पैसा ले लेते हैं। बाद में इसे दलाल के माध्यम से राशन मिलों में 25 रुपए में बेच दिया जाता है।

ऐसे चलता है पूरा खेल

असल में राशन दुकान से मिलने वाला चावल मोटा होता है। सच्चाई यह है कि अधिकांश कार्डधारी राशन दुकान से चावल लेने के बाद 22 रुपए में बेच देते हैं। चावल को राशन दुकान वाले भी खरीद लेते हैं। राशन दुकान से छुड़ा कर बेचा गया चावल राइस मिलों में जाता है। वहीं एक बार फिर मिलिंग कर बाजार में अधिक दाम में बेचा जाता है। अलग मिलिंग नहीं भी हुई तो उसी चावल को मिलर कस्टम मिलिंग के बदले नान को देता है। उसी चावल को नान के अधिकारी फिर राशन दुकानों में पहुंचा देते हैं। इस तरह रिसाइकिलिंग चलते रहता है। बेहतर होता कि सरकार चावल की क्वालिटी सुधार कर राशन कार्डधारियों को दे तो कालाबाजारी काफी हद तक रुकेगा। क्वालिटी ठीक होने से लोग चावल को खाएंगे।